वैज्ञानिक नाम हैं: टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया
स्थानीय नाम: अमृता, गुडुची, छिन्नरुहा, चक्रांगी, अमृत वल्ली, जीवन्तिका, मधुपर्णी, गुलवेल, अमृत वेल
फसल का विवरण गिलोय की बेल अक्सर जंगलों, खेतों की मेड़ों, पहाड़ी चट्टानों आदि क्षेत्रों में ऊंची चढ़ती हुए देखी जाती है। शाखाओं और तनों पर एक सफेद दाग धब्बा जैसा दिखाई देता है। गिलोय की छाल सलेटी -भूरे रंग की और हल्के सफेद रंग की, धब्बेदार और आसानी से छिलने वाली होती है। इसके पत्ते ५-१५ सेंटीमीटर अंडाकार होते हैं और इसका पत्ता हमें पान के पत्ते जैसा दिखता है। गिलोय नीम एवं आम के वृक्षों के आरा-पारा भी यह मिलती है और उसके गुण भी इसमें समाहित रहते हैं।नीम पर चढ़ी गिलोय इस संबंध में सबसे उचित मानी जाती है।यह पूरे भारत में उगाया जाता है।
उपयोगिता : गिलोय का पौधा कई औषधीय गुणों वाला एक महत्वपूर्ण पौधा है। इसे आयुर्वेदिक साहित्य में बुखार के लिए एक अद्भुत उपचार माना जाता है। गिलोय के फल, पत्ते, जड़ और अन्य भागों का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। इसका उपयोग कमजोरी, थकान, बुखार, मूत्र संबंधी समस्याओं, पीलिया, मधुमेह, गठिया और अपच के साथ-साथ कैंसर, एचआईवी और अन्य दवाओं के उत्पादन के लिए किया जाता है। गिलोय हमारे शरीर में गिर रहे प्लेटलेट्स की संख्या को बढ़ाने में भी फायदेमंद है।